Bangladesh India Border Kidney Smuggling Update | Kidney Village | बांग्लादेश का एक किडनी वाला गांव: भारत आकर किडनी बेच देते हैं लोग; तस्करी का शिकार बने, पूरा पैसा भी नहीं मिला
ढाका/कोलकाता3 मिनट पहले
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बांग्लादेश के उत्तर-पश्चिमी जिले जॉयपुरहाट का एक छोटा-सा गांव बाइगुनी अब ‘वन किडनी विलेज’ के नाम से कुख्यात हो चुका है। यहां हर 35 में से एक व्यक्ति अपनी किडनी बेच चुका है।
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत और बांग्लादेश के बीच चल रही इस अवैध अंग तस्करी ने कई परिवारों की जिंदगियों को बर्बाद कर दिया है।
45 वर्षीय सफीरुद्दीन इसी गांव के निवासी हैं। 2024 की गर्मियों में उन्होंने भारत आकर ₹2.5 लाख में अपनी किडनी बेच दी थी। उनका मकसद गरीबी से निकलना और अपने तीन बच्चों के लिए घर बनाना था। लेकिन अब उनका मकान अधूरा है, शरीर में लगातार दर्द है और काम करने की ताकत नहीं बची।
सफीरुद्दीन कहते हैं,
दलालों ने कहा था सब आसान होगा। मैंने सब कुछ बच्चों के लिए किया। लेकिन ऑपरेशन के बाद मेरा पासपोर्ट, मेडिकल पर्चियां और दवाइयां सब गायब हो गईं।
सफीरुद्दीन को अब तक नहीं पता कि उनकी किडनी किसे दी गई है।
फर्जी दस्तावेजों से मरीजों का रिश्तेदार बना रहे दलाल
भारत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA) 1994 के मुताबिक , किडनी का दान सिर्फ नजदीकी रिश्तेदारों के बीच या सरकारी मंजूरी से ही किया जा सकता है। लेकिन दलाल नकली दस्तावेजों और रिश्तेदारी के फर्जी सबूतों के जरिए इस नियम को चकमा दे देते हैं।
अल जजीरा की रिपोर्ट में WHO के विशेषज्ञ मोनिर मनीरुज्जमां के हवाले से बताया गया है कि
फर्जी पहचान पत्र, नोटरी सर्टिफिकेट और DNA रिपोर्ट तक बनवाई जाती हैं। अस्पतालों को अक्सर शक ही नहीं होता या वे जानबूझकर नजरअंदा कर देते हैं।”
बिनाई गांव की विधवा जोशना बेगम और उनके दूसरे पति बेलाल को 2019 में एक दलाल ने भारत ले जाकर कोलकाता के एक अस्पताल में ट्रांसप्लांट करवाया। पहले 7 लाख टका (बांग्लादेशी करेंसी) का वादा किया गया, लेकिन ऑपरेशन के बाद सिर्फ 3 लाख मिले।
जोशना कहती हैं कि, “दलाल ने पासपोर्ट तक नहीं लौटाया। बाद में बेलाल भी मुझे छोड़कर चला गया।”
जोशना अब दवाइयों के लिए तरसती हैं और भारी काम नहीं कर पातीं।
‘किडनी का पूरा पैसा नहीं मिला तो खुद दलाल बना’
ई-कॉमर्स धोखाधड़ी में सब कुछ गंवाने के बाद ढाका के कारोबारी मोहम्मद सजल (बदला हुआ नाम) ने 2022 में दिल्ली में अपनी किडनी बेची। उन्होंने 8 लाख रुपए में किडनी बेच दी।
लेकिन जब वादा किए गए 8 लाख रुपए नहीं मिले, तो उन्होंने खुद दलाल बनकर अन्य बांग्लादेशियों के लिए ट्रांसप्लांट का इंतजाम करना शुरू कर दिया।
“ये गिरोह दोनों देशों के डॉक्टर्स, अस्पतालों और दलालों से जुड़ा है। मैं अब उनकी बंदूक के साये में हूं,” सजल कहते हैं।
बांग्लादेश पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने अंग तस्करी के नेटवर्क पर कार्रवाई तेज कर दी है और कई दलाल गिरफ्तार किए गए हैं।
दिल्ली पुलिस ने जुलाई 2024 में एक महिला सर्जन को गिरफ्तार किया, जिन पर 15 बांग्लादेशी मरीजों के अवैध ट्रांसप्लांट कराने का आरोप है। लेकिन कार्रवाई नाकाफी है।
भारत में हेल्थ टूरिज्म एक 7.6 अरब डॉलर का उद्योग है और अधिक ट्रांसप्लांट का मतलब अधिक कमाई। ऐसे में अस्पतालों की चुप्पी भी इस व्यापार को बढ़ावा दे रही है।
2.5 लाख में किडनी खरीदकर 18 लाख में बेच रहे
रिपोर्ट में दलालों के हवाले से बताया गया है कि मरीज एक किडनी के लिए 18 से 22 लाख रुपए तक चुका देते हैं, जबकि किडनी बेचने वालों को सिर्फ 2.5 से 4 लाख रुपए मिलते हैं। बाकी पैसा अस्पतालों, दलालों, दस्तावेज बनाने वालों और डॉक्टरों में बंट जाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक कुछ मामलों में तो लोगों को भारत में नौकरी का झांसा देकर ले जाया गया और बाद में जबरन या धोखे से ऑपरेशन करवा दिया गया।
बांग्लादेश ग्रामीण उन्नति समिति (BRAC) के अधिकारी शरिफुल हसन के मुताबिक,
कुछ लोग गरीबी के चलते खुद अंग बेचते हैं, लेकिन कई बार उन्हें धोखा देकर फंसाया जाता है।