August 1, 2025

Rudraksha originated from the tears of Lord Shiva, story of rudraksha, shiv puran story, shiv puja vidhi, savan month significance | शिव जी के आंसु से उत्पन्न हुए हैं रुद्राक्ष: जानिए रुद्राक्ष कैसे धारण करें और रुद्राक्ष धारण करते समय किन बातों का ध्यान रखें?

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38 मिनट पहले

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अभी सावन मास चल रहा है, इस महीने में भगवान शिव की विशेष करने की परंपरा है। इस महीने में पूजा, व्रत-उपवास के साथ ही मंत्र जप और ध्यान भी करना चाहिए। शिव पूजा में बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल, अबीर, गुलाल, अष्टगंध के साथ ही रुद्राक्ष भी अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद रुद्राक्ष धारण करने की परंपरा है। मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई थी। जानिए रुद्राक्ष से जुड़ी खास बातें…

ये है रुद्राक्ष की उत्पत्ति की संक्षिप्त कथा

शिव पुराण के अनुसार रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। पौराणिक कथा है कि एक दिन शिव जी माता पार्वती को बता रहे थे कि कभी-कभी तप-तपस्या का परिणाम बहुत ही अद्भुत मिलता है। शिव जी ने बताया कि मैंने एक बार लंबे समय तक आंखें बंद करके तपस्या की। वर्षों तक आंखें नहीं खोलीं, क्योंकि आंखें खोलने से तपस्या का प्रभाव कम हो जाता है।

शिव जी ने आगे कहा कि तप करते समय मेरा मन थोड़ा विचलित हुआ और मैंने आंखें खोल लीं। चूंकि लंबे समय बाद मैंने आंखें खोली थीं तो आंखों से आंसुओं की कुछ बूंदें गिरीं। आंसुओं की बूंदें धरती पर जहां गिरी थीं, वहां वृक्ष उग आए। इन वृक्षों का नाम रुद्राक्ष पड़ा। मुझे रुद्र कहते हैं और आंख को अक्ष कहा जाता है, इसलिए ये वृक्ष रुद्राक्ष कहलाया।

रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व

शास्त्रों में रुद्राक्ष को पवित्र और दिव्य बताया गया है। सावन मास में शिव पूजा करने के साथ ही रुद्राक्ष धारण करना, पूजा में इसका प्रयोग करना और रुद्राभिषेक के दौरान इसका इस्तेमाल विशेष फलदायी माना गया है।

रुद्राक्ष के प्रकार और उनके प्रभाव

रुद्राक्ष की विभिन्न प्रजातियां हैं। रुद्राक्ष पर सीधी-सीधी धारियां बनी होती हैं, इन धारियों की संख्या के आधार पर रुद्राक्ष का प्रकार मालूम होता है। सबसे ज्यादा पंचमुखी रुद्राक्ष दिखाई देता है। इसे धारण करने से मानसिक संतुलन बना रहता है, तनाव दूर होता है। बाजार में 1 मुखी से 14 मुखी तक के रुद्राक्ष मिलते हैं।

रुद्राक्ष पहनते हैं तो ध्यान रखें ये बातें

जो लोग रुद्राक्ष पहनते हैं, उन्हें अधार्मिक कामों से बचना चाहिए। मांसाहार न करें और सभी का सम्मान करें। अपने माता-पिता की सेवा करें। नशा न करें। अगर इन बातों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो रुद्राक्ष से शुभ फल नहीं मिल पाते हैं।

3 तरह के होते हैं रुद्राक्ष

रुद्राक्ष आकार के अनुसार 3 तरह के होते हैं। जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर होते हैं, उन्हें सबसे उत्तम माना गया है। जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के समान होता है, वह मध्यम फल देने वाला माना गया है। चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।

कैसे रुद्राक्ष न धारण करें

  • जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो या पूरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों, ऐसा रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।
  • जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह सबसे अच्छा रहता है।
  • सावन महीने के सोमवार को शिव जी का अभिषेक करें और पूजा में रुद्राक्ष की भी पूजा करें, इसके बाद रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

रुद्राक्ष धारण की विधि

  • शुद्धिकरण: रुद्राक्ष को गंगाजल या शुद्ध जल से धोएं।
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से रुद्राक्ष को स्नान कराएं।
  • ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप करते रहें।
  • लाल, काले या सफेद धागे में रुद्राक्ष पिरोए, फिर माला बनाकर गले या दाहिने हाथ में धारण करें।
  • मान्यता है कि रुद्राक्ष को धारण करने वाला व्यक्ति यज्ञ, तप, तीर्थ, दान आदि पुण्यों का फल प्राप्त करता है।

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