August 23, 2025

Tradition of collecting Kush grass on bhadrapad amawasya in hindi, worship and Shraddha-Tarpan are not complete without Kush grass, kushgrahani amawasya on 23rd August | कुशग्रहणी अमावस्या आज: कुश घास इकट्ठा करने की परंपरा, कुश के बिना पूरे नहीं होते हैं पूजा-पाठ और श्राद्ध-तर्पण

0
kusha-ring-in-finger_1755851761.jpg


  • Hindi News
  • Jeevan mantra
  • Dharm
  • Tradition Of Collecting Kush Grass On Bhadrapad Amawasya In Hindi, Worship And Shraddha Tarpan Are Not Complete Without Kush Grass, Kushgrahani Amawasya On 23rd August

1 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

आज (23 अगस्त) भाद्रपद मास की अमावस्या है, इसे कुशग्रहणी और पिठोरा अमावस्या भी कहते हैं। इस तिथि पर धर्म-कर्म में इस्तेमाल होने वाली कुश घास सालभर के लिए इकट्ठा करने की परंपरा है। कुश घास का धर्म-कर्म में काफी अधिक महत्व है। इस घास के साथ पूजा-पाठ करने से भक्तों की मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती हैं, ऐसी मान्यता है। श्राद्ध, तर्पण जैसे पितरों से जुड़े कामों में भी कुश घास की अंगूठी बनाकर पहनी जाती है। इसके बाद पितरों के लिए धर्म-कर्म किए जाते हैं। भाद्रपद अमावस्या पर कुश घास का संग्रहण किया जाता है, इस कारण इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, कुशग्रहणी अमावस्या पर कुश घास को उखाड़ा जाता है। इस घास को हाथ से ही उखाड़ना चाहिए, इसके लिए किसी उपकरण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कुश का आगे वाला भाग हरा, पत्तियां पूर्ण होनी चाहिए। पूजा‑कर्म में कुश हाथ में न हो तो पूजा अधूरी मानी जाती है। अनामिका (रिंग फिंगर) उंगली में कुश की अंगूठी पहनी जाती है। पूजा करते समय कुश के आसन पर बैठना चाहिए। ऐसा करने से शरीर में आध्यात्मिक ऊर्जा बनी रहती है, यदि जमीन पर सीधे बैठें तो पूजा-पाठ से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा हम ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

कुश को ऊर्जा का कुचालक कहा जाता है। इसका इस्तेमाल आसन के रूप में करने से ऊर्जा शरीर में स्थिर रहती है, ये एक तरह से सकारात्मक ऊर्जा को जमीन से जाने से रोकने का कार्य करता है। वेदों में कुश को तत्काल फल देने वाला, आयु बढ़ाने वाला, वातावरण को शुद्ध करने वाला माना जाता है।

कुश से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

  • मत्स्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी को स्थापित किया। उसके बाद अपने शरीर पर लगे पानी को झाड़ा तब उनके शरीर से बाल पृथ्वी पर गिरे और कुशा के रूप में बदल गए। इसके बाद कुशा को पवित्र माना जाता है।
  • महाभारत के अनुसार, जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए तो उन्होंने वह कलश थोड़ी देर के लिए कुशा पर रख दिया। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा।
  • महाभारत के आदि पर्व के अनुसार राहु की महादशा में कुशा वाले पानी से नहाना चाहिए। इससे राहु के अशुभ प्रभाव से राहत मिलती है। इसी ग्रंथ में बताया गया है कि कर्ण न जब अपने पितरों का श्राद्ध में कुश का उपयोग किया था। इसलिए कहा गया है कि कुश पहनकर किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करता है।

कुशग्रहणी अमावस्या पर करें ये शुभ काम

अमावस्या पर पितर देवताओं के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण और धूप-ध्यान जरूर करना चाहिए। अमावस्या की दोपहर गाय के गोबर से बने कंडे जलाएं और अंगारों पर गुड़-घी डालकर पितरों का ध्यान करें। हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को अर्पित करें। इस दिन परिवार के मृत सदस्यों के लिए पिंडदान भी किया जा सकता है। माना जाता है कि अमावस्या पर किए गए इन शुभ कामों से पितर देवता तृप्त होते हैं।

पुरानी परंपरा है कि अमावस्या पर पवित्र नदियों में स्नान-दान करना चाहिए। अगर हमारे शहर के आसपास पवित्र नदी नहीं है तो हम घर पर ही पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। स्नान करते समय पवित्र नदियों का ध्यान करना चाहिए। स्नान के बाद घर के आसपास ही जरूरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।

खबरें और भी हैं…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


You may have missed